Thursday, October 31, 2024

दीपावली 2024 पूजन महूर्त व तिथि

 

 

दीपावली तिथि ओर पूजन समय

( स्थान और काल के मान अनुसार समय मे 5 मिनट का बदला हो सकता हैं )


 *धनतेरस: 29 अक्टूबर 2024* 


 *छोटी दिवाली/ नरक चतुर्दशी: 30 अक्टूबर 2024* 


 *दीवाली महापर्व : 31 अक्टूबर 2024* 




 *त्रियोदशी ( धनतेरस ) 2024 तिथि* 29 अक्टूबर 2024 सुबह 10:31 से 30 अक्टूबर 2024 दोपहर 1:15 मिनट तक 


 *धनतेरस पूजा का शुभ मुहूर्त* 

29 अक्टूबर को गोधूलि काल शाम 6 बजकर 31 मिनट से शुरू होकर रात 8 बजकर 31 मिनट तक रहेगा।


 *चतुर्दशी तिथि (नरक चतुर्दशी, छोटी दीवाली )* 

30 अक्टूबर 2024 दोपहर 1:15 से 31 अक्टूबर 2024 दोपहर 03:52 मिनट तक


चूंकि, यह त्योहार संध्या बेला में मनाया जाता है इसलिए यम का दीपर 30 अक्टूबर को ही जलाना शुभ रहेगा. नरक चतुर्दशी को सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में यम का दीपक जलाना चाहिए


 *अमावस्या तिथि ( लक्ष्मी पूजन, बड़ी दीवाली )* 

दिवाली और लक्ष्मी पूजा तिथि- 31 अक्टूबर 2024 दोपहर 03:12 से 01 नवंबर 2024 शाम 05:14 तक 


1 नवंबर को निशिता महूर्त प्राप्त नही होगा इसलिए दीपावली 31 अक्टूबर को ही मनाना शुभ है।



 *लक्ष्मी पूजा (प्रदोष काल समय) -* 31 अक्टूबर की शाम 5:36 से रात 8:11 मिनट तक रहेगा


 *वृषभ काल -* 31 अक्टूबर 2024 शाम 06:25 से रात 08:20 मिनट तक


 *महानिशितकाल समय ( साधकों हेतु सर्वश्रेष्ठ )-* 31 अक्टूबर 2024 को रात 11:39 से अर्धरात्रि 12:31 मिनट तक


 *सिंह लग्न -* मध्यरात्रि 12:56 - 03:10 (1 नवंबर 2024)


 *लक्ष्मी पूजन चौघड़िया बिशेष* 


31 अक्टूबर 2024


शुभ व अमृत शाम 04:12 से 07:12 तक

चर चौघड़िया रात 07:12 से 08:48 तक


 *भैरव वीरेन्द्र रुद्रनाथ अघोरी*

 *वैदिक तंत्र साधना संस्थान®*

 *8923400693*

Monday, September 16, 2024

श्राद्ध पक्ष 2024 तिथियां

 

श्राद्ध पक्ष / पित्र पक्ष तिथियां

पितर पक्ष इस साल 17 सितंबर से आरंभ होगा और इसका समापन 02 अक्‍टूबर को होगा।

पितृ पक्ष के दौरान पितरों का पिंडदान करने के सााथ तर्पण करना शुभ माना जाता है। 

हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के साथ पितृपक्ष आरंभ हो जाते हैं, 

जो आश्विन मास की अमावस्या तिथि को समाप्त होते हैं। 

बता दें कि इस साल पितृपक्ष 17 सितंबर से आरंभ हो रहे हैं। 

16 दिनों तक चलने वाले पितृपक्ष के दौरान पूर्वजों को याद किया जाता है

उनका तर्पण करने के साथ श्राद्ध और पिंडदान किया जाता है। 

माना जाता है कि ऐसा करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। 

इसके साथ ही वह सुख-समृद्धि और खुशहाली का आशीर्वाद देते हैं। 


पितृ पक्ष 2024 श्राद्ध की 16 तिथियां :

17 सितंबर 2024 पूर्णिमा श्राद्ध : भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि 17 सितंबर को सुबह 11 बजकर 44 मिनट से लेकर 18 सितंबर सुबह 08 बजकर 4 मिनट तक रहेगी।


18 सितंबर 2024 प्रतिपदा श्राद्ध : अश्विन माह कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि 18 सितंबर को सुबह 08 बजकर 04 मिनट से लेकर 19 सितंबर सुबह 04 बजकर 19 ए एम तक रहेगी।


19 सितंबर 2024 द्वितीया श्राद्ध : अश्विन माह की कृष्ण पक्ष द्वितीया तिथि 19 सितंबर को सुबह 04 बजकर 19 मिनट से लेकर 20 सितंबर को प्रातःकाल 12 बजकर 39 तक रहेगी।


20 सितंबर 2024 तृतीया श्राद्ध : अश्विन माह कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि 20 सितंबर को सुबह 12 बजकर 39 मिनट से लेकर रात 09 बजकर 15 मिनट तक रहेगी।


21 सितंबर 2024 चतुर्थी श्राद्ध : अश्विन माह कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 20 सितंबर को रात 09 बजकर 15 मिनट से लेकर 21 सितंबर को सायं 6 बजकर 13 मिनट तक रहेगी।


22 सितंबर 2024 पंचमी श्राद्ध : अश्विन माह कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि 21 सितंबर को शाम 6 बजकर 13 मिनट से लेकर 22 सितंबर को दोपहर 03 बजकर 34 मिनट तक रहेगी।


23 सितंबर 2024 षष्ठी श्राद्ध : अश्विन माह कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि 22 सितंबर को दोपहर 03 बजकर 43 मिनट से 23 सितंबर को दोपहर 1 बजकर 50 मिनट तक रहेगी।


24 सितंबर 2024 सप्तमी श्राद्ध : अश्विन माह कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि 23 सितंबर से दोपहर 1 बजकर 50 मिनट से लेकर 24 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 38 मिनट तक रहेगी।


25 सितंबर 2024 अष्टमी श्राद्ध : अश्विन माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 24 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 38 मिनट से 25 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 10 मिनट तक रहेगी।


26 सितंबर 2024 नवमी श्राद्ध : अश्विन माह कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि25 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 10 मिनट से 26 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 25 मिनट तक रहेगी।


27 सितंबर 2024 दशमी श्राद्ध : अश्विन माह कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि 26 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 25 मिनट से 27 सितंबर दोपहर 01 बजकर 20 मिनट तक रहेगी।


28 सितंबर 2024 एकादशी श्राद्ध : अश्विन माह कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 27 सितंबर दोपहर 01 बजकर 20 मिनट से 28 सितंबर को दोपहर 02 बजकर 49 मिनट तक रहेगी।


29 सितंबर 2024 द्वादशी का श्राद्ध : अश्विन माह कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि 28 सितंबर को दोपहर 02 बजकर 49 मिनट से 29 सितंबर को शाम 04 बजकर 47 मिनट तक रहेगी।


30 सितंबर 2024 को त्रयोदशी का श्राद्ध : अश्विन माह कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 29 सितंबर को शाम 04 बजकर 47 मिनट से 30 सितंबर को शाम 07 बजकर 06 मिनट तक रहेगी।


1 अक्टूबर 2024 को चतुर्दशी का श्राद्ध : अश्विन माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 30 सितंबर को शाम 07 बजकर 06 मिनट से 1 अक्टूबर को रात 09 बजकर 34 मिनट तक रहेगी।


2 अक्टूबर 2024 को अमावस्या का श्राद्ध : अश्विन माह की अमावस्या तिथि 1 अक्टूबर को रात 09 बजकर 34 मिनट से 3 अक्टूबर को सुबह 12 बजकर 18 मिनट तक रहेगी।

Thursday, April 04, 2024

चैत्र नवरात्रि 2024 पूजन विधि

 


नवरात्रि का त्योहार साल मे दो बार आता है। एक बार होली के महीने में जिसे चैत्र नवरात्रि कहा जाता है और दूसरी बार दशहरे के दौरन जिसे शारदीय  नवरात्रि कहते हैं। दोनो ही बार 9 दिन मां के नौ रुपों की पूजा की जाती है। आठवें दिन मां दुर्गा की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन कन्या पूजन भी होता है।

शारदीय नवरात्रि में कलश स्थापना का विशेष महत्व होता है. नवरात्रि के पहले दिन विधि विधान से घटस्थापन (कलश स्थापन) की जाती है. घटस्थापना के लिए कुछ विशेष सामग्री का होना जरुरी है. जिसके बिना आपकी दुर्गा पूजा अधूरी है. कलश स्थापना के लिए जौ बोने के लिए चौड़े मुंह वाला मिट्टी का पात्र, स्वच्छ मिट्टी, मिट्टी या तांबे का कलश साथ में ढक्कन, कलावा, लाल कपड़ा, नारियल, सुपारी, गंगाजल, दूर्वा, आम या अशोक के पत्ते, सप्तधान्य, अक्षत, लाल पुष्प, सिंदूर, लौंग, इलायची, पान, मिठाई, इत्र, सिक्का आदि एकत्रित करें.

कलश स्थापना विधि

कलश स्थापना करने से पहले ध्यान दें कि कलश की पूर्व या उत्तर दिशा या फिर ईशान कोण में स्थापना करें.

कलश स्थापना के लिए पूजा की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं और अक्षत अष्टदल बनाकर मां दुर्गा की प्रतिमा विराजमान करें.

इसके बाद कलश में पानी, गंगाजल, सिक्का, रोली, हल्दी गांठ, दूर्वा, सुपारी डालकर कलश स्थापित करें.

कलश में 5 आम के पत्ते रखकर उसे ढक दें. ऊपर से नारियल में कलावा बांधकर रख दें.

एक पात्र में स्वच्छ मिट्टी डालकर जौ बोएं और इसे चौकी पर रख दें.

मां की चौकी

लकड़ी की एक साफ सुधरी चौकी रखें।

गंगाजल छिड़का कर उस पर लाल कपड़ा बिछाएं।

इसे कलश के दाहिने तरफ रखें। मां की प्रतिया या फोटो स्थापित करें। धूप और दीप करें। एक ज्योत ऐसी रखें जो कि नौ दिन तक जलती रहे।

मां को फल, फूल अर्पित करें। चुनरी चढ़ाएं, श्रृंगार करें।

प्रतिदिन भोग में सुपारी, लौंग का जोड़ा बतासे सहित, बूंदी का लड्डू दें 

धूप जलाकर अराधना और आरती करें नौ दिन करें रोज पूजा

अधिकतर लोग नौ दिन तक व्रत रखते हैं तो उन्हें नौ दिन ही पूजा पाठ करना जरूरी है। 

ध्यान रहे कि वो अन्न ना खाएं। सिर्फ फलाहार ही लें।

दुर्गा सप्तशती या दुर्गा कवच का पाठ करें, मां के मंदिर जाएं

अष्टमी के दिन कन्या पूजन जरूर करें


मान्यता है कि चैत्र नवरात्रि पर मां दुर्गा की पूजा करने से जीवन से सभी कष्ट दूर होते हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। हालांकि, कई बार लोग जाने अनजाने में कुछ ऐसी गलतियां कर देते हैं, जो व्रत को सफल बनाने में बाधा डाल सकते हैं। इसी कड़ी में आइए जानते हैं कि, नवरात्रि में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

नवरात्रि के 9 दिन इन बातों का विशेषकर रखें ध्यान

नवरात्रि में साफ-सफाई का खास ध्यान रखना चाहिए। घर के किसी भी हिस्से में धूल व गंदगी ना होने दें। मान्यता है कि जिस घर में गंदगी होती है, वहां माता लक्ष्मी का वास नहीं होता।  

नवरात्रि में भूलकर भी बाल, दाढ़ी और नाखून नहीं काटने चाहिए। यदि आप ऐसा करते हैं, तो जीवन पर इसका अशुभ प्रभाव पड़ सकता है।

नवरात्रि में यदि कलश स्थापना और अखंड ज्योत जलाई गई हो, तो उस घर को भूलकर भी खाली ना छोड़ें। घर में हर समय कोई ना कोई सदस्य मौजूद रहना चाहिए।

नवरात्रि में दिन में सोना नहीं चाहिए। इन दिनों आप कीर्तन करें और परिवार के साथ मंदिरों में दर्शन के लिए जाएं।

इस दौरान घर में सात्विक भोजन ही बनाएं। भूलकर भी मांसाहार और तामसिक भोजन ना करें। इसके अलावा घर में लहसुन और प्याज का इस्तेमाल ना करें।

नवरात्रि की पूजा में मां के प्रिय रंग लाल, पीले, गुलाबी और हरे रंग के वस्त्रों का प्रयोग करें।

इस दौरान मन को स्वच्छ रखें। किसी के बारे में गलत सोच और गलत विचार नहीं रखना है।

नवरात्रि के दौरान अनाज और दालें नहीं खानी चाहिए।


भैरव वीरेन्द्र रुद्रनाथ अघोरी

वैदिक तंत्र साधना संस्थान®

*89234 00693*


चैत्र नवरात्रि 2024 महुर्त, तिथि, पूजन विधि

 


नवरात्रि 2024 की मुख्य तिथियाँ, पूजा का शुभ समय


चैत्र नवरात्रि घटस्थापना शुभ मुहूर्त घटस्थापना/कलश स्थापना (देवी का आवाहन): 9 मार्च, 2024, मंगलवार

प्रतिपदा तिथि प्रारंभ 8 अप्रैल 2024, रात 11:50 बजे से 

प्रतिपदा तिथि समाप्त 9 अप्रैल 2024, शाम 8:30 बजे तक 

नवरात्रि प्रारंभ तिथि: 9 अप्रैल 2024, मंगलवार

नवरात्रि समाप्ति तिथि: 17 अप्रैल 2024, बुधवार

घटस्थापना मुहूर्त - 9 अप्रैल, 2024, मंगलवार, सुबह 6:02 से लेकर दोपहर 10:16 बजे तक

कलश स्थापना का समय 04 घंटे 14 मिनट

घटस्थापना अभिजित मुहूर्त 9 अप्रैल, 2024, मंगलवार, पहले पहर 11:57 से 12:48 बजे तक

कुल अवधि - 51 मिनट


चैत्र नवरात्रि शीतकाल के समापन के बाद बसंत ऋतु के दौरान मनाई जाती है। इन शुभ नौ दिनों और दस रातों में अच्छाई का जश्न मनाया जाता है। इस नवरात्रि के दौरान भक्तगण माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा करते हैं।


प्रतिपदा चैत्र नवरात्रि: मां शैलपुत्री पूजा, घटस्थापना: 9 अप्रैल 2024, मंगलवार

द्वितीय चैत नवरात्रि: मां ब्रह्मचारिणी पूजा, 10 अप्रैल 2024, बुधवार

तृतीय चैत्र नवरात्रि: मां चंद्रघंटा पूजा, 11 अप्रैल 2024, गुरुवार

चतुर्थी चैत्र नवरात्रि: मां कूष्मांडा पूजा, 12 अप्रैल 2024, शुक्रवार

पंचमी चैत्र नवरात्रिः माँ स्कंदमाता पूजा, 13 अप्रैल 2024, शनिवार

छठा चैत्र नवरात्रि: मां कात्यायनी पूजा, 14 अप्रैल 2024, रविवार

सप्तमी चैत्र नवरात्रिः माँ कालरात्रि पूजा, 15 अप्रैल 2024, सोमवार

अष्टमी चैत्र नवरात्रिः माँ महागौरी दुर्गा महाष्टमी पूजा, 16 अप्रैल 2024, मंगलवार

नवमी चैत्र नवरात्रिः माँ सिद्धिदात्री दुर्गा महानवमी पूजा, 17 अप्रैल 2024, बुधवार


नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूप

नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान, पूजा नौ रूपों की देवी दुर्गा को समर्पित की जाती है, जो निम्नलिखित हैं:

1. मां शैलपुत्री, मां दुर्गा के नौ रूपों में पहली प्रतिष्ठा है, जो चंद्रमा का प्रतीक है। मां शैलपुत्री की पूजा का मानना है कि चंद्रमा से संबंधित कष्टों को दूर करता है।

2. मां ब्रह्मचारिणी को ज्योतिषीय दृष्टिकोण से मंगल के नियंत्रण से जोड़ा गया है। मां देवी की पूजा का मानना है कि मंगल के दुष्ट प्रभाव को कम करता है।

3. मां चंद्रघंटा, दुर्गा देवी का तीसरा स्वरूप, शुक्र ग्रह पर नियंत्रण के साथ जुड़ा हुआ है। इसकी पूजा से विशेषकर शुक्र से जुड़े अनुकूल प्रभावों को कम करने का मानना है।

4. मां कुष्मांडा, दिव्य प्रतिष्ठा, भगवान सूर्य का मार्गदर्शन करती है। उसकी पूजा से सूर्य के अशुभ प्रभावों से सुरक्षा मिलने का मानना है।

5. देवी स्कंदमाता की पूजा से माना जाता है कि बुद्धिमत्ता और बुरे प्रभावों को दूर किया जा सकता है जो बुध ग्रह से जुड़े हैं।

6. माता कात्यायनी के प्रति भक्ति से जुपिटर से जुड़े अशुभ प्रभावों को दूर करने का मानना है।

7. माता कालरात्रि शनि ग्रह पर नियंत्रण करती है, और इसकी पूजा से शनि देव के अशुभ प्रभावों को दूर करने का मानना है।

8. माता महागौरी की पूजा करने से माना जाता है कि इससे राहु से जुड़े दोषों को ठीक किया जा सकता है।

9. माता सिद्धिदात्री को केतु ग्रह का नियंत्रण करने का मानना है और उसकी पूजा से केतु के अनुकूल प्रभावों से बचा जा सकता है।


नवरात्रि में माता को समर्पित रंग

नवरात्रि के नौ दिनों को प्रतिष्ठित रंगों से प्रतिष्ठानित किया जाता है जो भक्तगण प्रत्येक दुर्गा के प्रति पूजा के दौरान पहनते हैं। इन रंगों का संकेत देवी की अद्वितीय गुणों को दर्शाता है और इनका अपना विशेष महत्व होता है।

1. पहले दिन का रंग पीला/नारंगीः नए आरंभों के लिए चमक और आशावाद को प्रतिष्ठित करता है, साथ ही समृद्धि की सोने की चमक

2. दूसरे दिन का रंग हराः पुनर्नवीनी, विकास, प्रजनन, और प्राकृतिक हरियाली को प्रतिष्ठित करता है

3. तीसरे दिन का रंग धूपीयाः राख से भगवानी शक्ति में परिणाम होने की संकेत है, नकारात्मकता को हटाना

4. चौथे दिन का रंग तरंगें फैलाने वाला लालः उत्साह और क्रिया का रंग, गरम, प्रेमपूर्ण

5. पाँचवे दिन का रंग नीला: नीले रंग में सर्वाधिक चिकित्सा ऊर्जा, अनंत, व्यापकता, और शांति को प्रतिष्ठित करता है

6. छठे दिन का रंग सफेदः शांति, शुद्धता, प्रकाश, बोध, और स्पष्टता, आंतरिक आत्मा को शांत करने के लिए

7. सातवे दिन का रंग गुलाबीः निर्मल प्रेम, समरसता, और खिलती हुई सुंदरता

8. आठवें दिन का रंग आसमानी: विस्तारशील अंतरिक्ष और मुक्तिदायक गुण, जीवन में बादल और आसमान की तरह ऊंचा उड़ने के लिए

9. नौवें दिन का रंग केसरी: सागरिक अग्नि, साहस, त्याग, और अहंकार को हटाने की प्रतिष्ठा करने वाला


नवदुर्गा के रूप व विवरण 

मां दुर्गा नवरात्रि के नौ दिनों में नौ शानदार रूपों में प्रकट होती हैं, प्रत्येक महान नारी 'शक्ति' को दर्शाते हैं। नौ देवीयों के पीछे कुछ लोकप्रिय कथाएँ हैं:


1. शैलपुत्रीः पहाड़ों की बेटी, वह प्रकृति से प्यार करती है और त्रिशूल और कमल पकड़े हुए, नंदी बैल पर सवार होकर प्रकट होती है।

2. ब्रह्मचारिणीः सर्वोच्च तपस्वी रूप जो उपवास करती है और ध्यान और माला का प्रदर्शन करते हुए 'तपस्या' करती है सभी विद्याओं के पीछे की आध्यात्मिक शक्ति।

3. चंद्रघंटाः अपने सुनहरे घंटी के आकार के हार के साथ, वह बहादुरी और साहस का प्रतीक है राक्षसों के खिलाफ युद्ध के लिए हमेशा तैयार रहती है।

4. कुष्मांडाः माना जाता है कि सुंदर देवी सूर्य के अंदर निवास करती हैं, उन्होंने अपनी मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की और सभी लोकों को प्रकाश से प्रकाशित किया!

5. स्कंदमाताः स्कंद की माता के रूप में, वह पृथ्वी पर सभी जीवन के लिए आश्रय आकाश की तरह अपना दिव्य, मातृ प्रेम और सुरक्षा फैलाती है।

6. कात्यायनीः महान योद्धा देवी जिन्होंने देवताओं और ऋषियों को धर्म के लिए सबसे बड़े ख़तरे राक्षस महिषासुर पर काबू पाने में मदद की।

7. कालरात्रिः प्रचंड रूप, अपनी तेज किरणों से अंधेरे और अज्ञान को नष्ट करने वाली, जैसे पूर्णिमा का चंद्रमा रात के अंधेरे को दूर कर देता है।

8. महागौरीः स्वच्छता, सादगी और शांति जैसे गुणों का प्रतीक, फिर भी असाधारण रूप से शक्तिशाली 'गौरी' जो विपरीतताओं में सामंजस्य बिठाती है।

9. सिद्धिदात्रीः सर्वोच्च माँ जीवन के सभी प्रकारों को धार्मिक मार्ग पर चलने पर रहस्यमय शक्तियाँ, समृद्धि और आध्यात्मिक धन प्रदान करती हैं।

भैरव वीरेन्द्र रुद्रनाथ अघोरी

वैदिक तंत्र साधना संस्थान®

*89234 00693*


Tuesday, March 05, 2024

माला प्राण प्रतिष्ठा विधि / Mala Pran Prtistha Vidhi

 


वैदिक तंत्र साधना संस्थान

जाप माला को जागृत ( प्रतिष्ठित ) करना


( वैसे तो तंत्र मैं प्राण प्रतिष्ठित माला का विशेष महत्व नहीं है क्योंकि तंत्र भाव प्रधान है 

तो आप पूर्ण भाव से यदि कंकड़ की माला बनाकर जाप करते हो तो भी सफलता मिलेगी ) 

यह विधान में उन लोगों के लिए दे रहा हूं जिन्हें लगता है प्राण प्रतिष्ठित माला से जाप करने से उनकी साधना एक बार में सफल हो जाएगी

भारतीय वैदिक संस्कृति में प्राण प्रतिष्ठा या जागृति का विशेष महत्व है 

मंत्रों द्वारा किसी भी यंत्र, मूर्ति ,माला या विशेष कोई अस्त्र को अभिमंत्रित करके उसे प्राण प्रतिष्ठित करके स्थापित किया जाता है

यह देखा जाता है की मंदिरों में मूर्तियों को भी प्राण प्रतिष्ठित किया जाता है 

प्राण प्रतिष्ठा का मतलब होता है अपनी प्राण ऊर्जा, आत्मउर्जा को किसी भी निर्जीव वस्तु में स्थानांतरित करके उसे ऊर्जावान बनाना

प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति या यंत्र का पूजन करने से फल कई गुना अधिक मिलता है 

या प्राण प्रतिष्ठित माला से जाप करने से जाप का फल भी कई गुना बढ़ जाता है

तो आज आप सभी को मैं माला को प्राण प्रतिष्ठित करने की विधि देने जा रहा हूं 

जिसे आप स्वयं कर सकते हो और अपनी किसी भी माल को जागृत कर सकते हो 

चाहे वह रुद्राक्ष ,स्फटिक ,काले हकीक, तुलसी या चंदन की हो


बाजार से माला लेते समय आपको माला का हर एक मनका देखना है कि वह टूटा फूटा ना हो मोती में किसी प्रकार की चटक ना हो ( ज्यादा असली नकली के चक्कर में नहीं पड़ना है बस पूर्ण विश्वास के साथ खरीद ले )

किसी भी रविवार या सोमवार वाले दिन सुबह नहा धोकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर लाल वस्त्र पहनकर उत्तर दिशा की तरफ मुख करके लाल आसन पर बैठे 

 अपने साथ गुरु पूजन की सारी सामग्री तथा निम्न सामग्री रखें कच्चा दूध, गंगाजल, स्वच्छ जल, चंदन, पीपल के पत्ते 11, एक बड़ी थाली

सबसे पहले अपने सामने खाली रखें और उसमें पीपल के पत्ते बिछा लें 

अब उन पीपल के पत्तों पर जिस माला को प्राण प्रतिष्ठित करना है उसको रखें

अब पहले गुरु का पंचोपचार पूजन करें भोग में बुंददी लड्डू दें

फिर माला को साफ पानी से धो लें ,

फिर गंगाजल से धुलें, फिर कच्चे दूध से स्नान कराएं उसके बाद पुनः साफ जल से धुले

इतना करने के बाद पुनः उसे पत्तों पर स्थापित करें अब चंदन से टीका करें और धूप दीप करें

अब अपने दोनों अंगूठे माला के सुमेरु पर लगाएं और दिए गए मंत्र का कम से कम 30   मिनट तक जाप करें 

उसके बाद माला को दाहिने हाथ में लेकर बिना तर्जनी उंगली का स्पर्श किये मध्यमा उँगली से मंत्र का 11 माला जाप करें 


जाप की संख्या निश्चित नही है आप 11, 21, 31 या जितनी कर सकते हो या जितनी ऊर्जा आपको माला में डालनी है 

उतना कर सकते हो।


 दिव्य मंत्र

 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ( रुद्राक्ष ) अक्षमालिकायें प्राण प्राणाय जाग्रति कुरु कुरु नमः


मंत्र में जहां रुद्राक्ष लिखा है आप वहां माला का नाम बदल सकते हैं जैसे हकीक, चंदन आदि


 भैरव वीरेन्द्र रुद्रनाथ अघोरी

वैदिक तंत्र साधना संस्थान®

*89234 00693*

शिवलिंग पर चढ़ाएं ये वस्तुएं/ Shivling Par Chadaiyn Ye


 वैदिक तंत्र साधना संस्थान®

बिल्व वृक्ष की अद्भुत जानकारी


🌿1. बिल्व वृक्ष के आसपास सांप नहीं आते ।

🌿2. अगर किसी की शव यात्रा बिल्व वृक्ष की छाया से होकर गुजरे तो उसका मोक्ष हो जाता है ।

🌿3. वायुमंडल में व्याप्त अशुध्दियों को सोखने की क्षमता सबसे ज्यादा बिल्व वृक्ष में होती है ।

🌿4. चार पांच छः या सात पत्तो वाले बिल्व पत्रक पाने वाला परम भाग्यशाली और शिव को अर्पण करने से अनंत गुना फल मिलता है ।

🌿5. बेल वृक्ष को काटने से वंश का नाश होता है। और बेल वृक्ष लगाने से वंश की वृद्धि होती है।

🌿6. सुबह शाम बेल वृक्ष के दर्शन मात्र से पापो का नाश होता है।

🌿7. बेल वृक्ष को सींचने से पितर तृप्त होते है।

🌿8. बेल वृक्ष और सफ़ेद आक् को जोड़े से लगाने पर अटूट लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

🌿9. बेल पत्र और ताम्र धातु के एक विशेष प्रयोग से ऋषि मुनि स्वर्ण धातु का उत्पादन करते थे ।

🌿10. जीवन में सिर्फ एक बार और वो भी यदि भूल से भी शिवलिंग पर बेल पत्र चढ़ा दिया हो तो भी उसके सारे पाप मुक्त हो जाते है ।

🌿11. बेल वृक्ष का रोपण, पोषण और संवर्धन करने से महादेव कृपा प्राप्त होती है।


🌿कृपया बिल्व पत्र का पेड़ जरूर लगाये । बिल्व पत्र के लिए पेड़ को क्षति न पहुचाएं।


शिवजी की पूजा में ध्यान रखने योग्य बात:-


शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव को कौन सी चीज़ चढाने से क्या फल मिलता है । किसी भी देवी-देवता का पूजन करते वक़्त उनको अनेक चीज़ें अर्पित की जाती है। प्रायः भगवन को अर्पित की जाने वाली हर चीज़ का फल अलग होता है। शिव पुराण में इस बात का वर्णन

मिलता है कि भगवन शिव को अर्पित करने वाली अलग-अलग चीज़ों का क्या फल होता है।

शिवपुराण के अनुसार जानिए कौन सा अनाज भगवान शिव को चढ़ाने से क्या फल मिलता है:

👉1. भगवान शिव को चावल चढ़ाने से धन की प्राप्ति होती है।

👉2. तिल चढ़ाने से पापों का नाश हो जाताहै।

👉3. जौ अर्पित करने से सुख में वृद्धि होती है।

👉4. गेहूं चढ़ाने से संतान वृद्धि होती है।


शिवपुराण के अनुसार जानिए भगवान शिव को कौन सा रस(द्रव्य) चढ़ाने से उसका क्या फल मिलता है।


🚩1. ज्वर (बुखार) होने पर भगवान शिव को जलधारा चढ़ाने से शीघ्र लाभ मिलता है। सुख व संतान की वृद्धि के लिए भी जलधारा द्वारा शिव की पूजा उत्तम बताई गई है।

🚩2. नपुंसक व्यक्ति अगर शुद्ध घी से भगवान शिव का अभिषेक करे, ब्राह्मणों को भोजन कराए तथा सोमवार का व्रत करे तो उसकी समस्या का निदान संभव है।

🚩3. तेज दिमाग के लिए शक्कर मिश्रित दूध भगवान शिव को चढ़ाएं।

🚩4. सुगंधित तेल से भगवान शिव का अभिषेक करने पर समृद्धि में वृद्धि होती है।

🚩5. शिवलिंग पर ईख (गन्ना) का रस चढ़ाया जाए तो सभी आनंदों की प्राप्ति होती है।

🚩6. शिव को गंगाजल चढ़ाने से भोग व मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है।

🚩7. मधु (शहद) से भगवान शिव का अभिषेक करने से राजयक्ष्मा (टीबी) रोग में आराम मिलता है।


शिवपुराण के अनुसार जानिए भगवान शिव को कौन का फूल चढ़ाया जाए तो उसका क्या फल मिलता है-


☑️1. लाल व सफेद आंकड़े के फूल से भगवान शिव का पूजन करने पर भोग व मोक्ष की प्राप्ति होती है।

☑️2. चमेली के फूल से पूजन करने पर वाहन सुख मिलता है।

☑️3. अलसी के फूलों से शिव का पूजन करने से मनुष्य भगवान विष्णु को प्रिय होता है।

☑️4. शमी पत्रों (पत्तों) से पूजन करने पर मोक्ष प्राप्त होता है।

☑️5. बेला के फूल से पूजन करने पर सुंदर व सुशील पत्नी मिलती है।

☑️6. जूही के फूल से शिव का पूजन करें तो घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती।

☑️7. कनेर के फूलों से शिव पूजन करने से नए वस्त्र मिलते हैं।

☑️8. हरसिंगार के फूलों से पूजन करने पर सुख-सम्पत्ति में वृद्धि होती है।

☑️9. धतूरे के फूल से पूजन करने पर भगवान शंकर सुयोग्य पुत्र प्रदान करते हैं, जो कुल का नाम रोशनकरता है।

☑️10. लाल डंठलवाला धतूरा पूजन में शुभ माना गया है।

☑️11. दूर्वा से पूजन करने पर आयु बढ़ती है।

शिव जी पूजन विधि



 


वैदिक तंत्र साधना संस्थान®

 शिव जी पूजन विधि

 नोट :- पूजन मे कोई सामग्री ना मिले तो जो मिल जाये उसी से पूजन करे

सुबह नहा धोकर किसी भी भगवान शिव के मंदिर में जाये जहाँ शिवलिंग स्थापित हो

( यदि घर पर कर रहे हो तो हाथ में चावल लेकर बोलना होता है भगवान शिव मैं आपका माता पार्वती सहित आवाहन करता हूं इस चल शिवलिंग में आकर स्थान लीजिए ) 

सर्वप्रथम शिवलिंग को प्रणाम कर प्रभु से पूजन की अनुमति लें फिर शिवलिंग को सादा जल से स्नान करवाये 
उसके बाद क्रमशः कच्चा दूध, दही, शहद, घी से स्नान करवाये 
अंत के बारीक शक्कर से हल्के हाथ से मालिश करें उसके बाद गंगाजल फिर सादा जल 

ततपश्चात साफ वस्त्र से पोंछने के बाद थोड़ा से इत्र लागये, फिर वस्त्र स्वरूप कलवा चढ़ाएं, फिर चंदन या अष्टगंध अर्पित करें , फिर चावल दें, पुष्प दें ( आकडा या मदार, धतूरा, गुलाब या जो उपलब्ध हो )
अखंडित बेलपत्र अर्पित करें, धूप - दीप अर्पित करें, भोग नवेदित करें ( अपनी इच्छा अनुसार ) ऋतुफल, पेडे, सफेद मिठाई या घर का बना पकवान दे सकते हो, जल दें 
अब कपूर से आरती करें 

ये पूजन सम्पन्न हुआ अपनी इच्छा अनुसार वहीं बेठकर चाहे मानसिक या माला से ॐ नमः शिवाय का जाप करें 

( यदि घर में कर रहे हो तो फिर सारी क्रिया संपन्न होने के बाद शक्ति को निज धाम भेजना होता है ) 
 मंत्र बोलते हुए मंत्र पोस्ट के अंत के दिया गया है

यदि आप व्रत रहते हो तो फिर शाम के पूजन के बाद शक्ति का विसर्जन होता है
व्रत का संकल्प लें ( यदि रहते हो तो )
संकल्प में स्पष्ट कहें 
कि व्रत जलाहार ,फलाहार या निराहार जैसे रहना हो कहे ,दिन ॐ नमः शिवाय का मानसिक जाप करते रहे

शाम होने पर फिर से शिव जी का पंचोपचार पूजन करे 

 *ॐ भवाय नमः*
 *ॐ शर्वाय नमः* 
 *ॐ रूद्राय नमः* 
 *ॐ पशुपताय नमः* 
 *ॐ उग्राय नमः* 
 *ॐ महानाय नमः* 
 *ॐ भीमाय नमः* 
 *ॐ ईषानाय नमः*

इन आठ नामो का जाप करें

ॐ नमः शिवाय का यथासंभव जाप करें और व्रत का पारण करें फिर भगवान शिव का पूजन करें और पूजन का विसर्जन करें

हाथ मे थोड़े से चावल लेकर निम्न मंत्र बोलें 

मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर
यत्पूजितं माया देवं परिपूर्ण तदस्तु मे

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम
पूजनम न जानामि क्षमस्व परमेश्वर।।'

निज मन्दिरम गछ गछ परमेश्वरा
निज मन्दिरम गछ गछ परमेश्वरी
ये दो बार बोलना है 

फिर वो चावल जमीन पर डाल दें प्रणाम करें और  खडे हो जाये

पंचोपचार पूजन में शिवलिंग को दूध, दही, घी ,गंगाजल ,छाछ ,गन्ना का रस ,पानी ,शहद आदि से स्नान कराये या जो सुलभ हो जाये उससे करा लें

किसी कामना के लिये पूजन करना चाहता है तो संकल्प में स्पष्ट बोल दें शिव जी की कृपा से वो कामना अवश्य ही शीघ्र पूरी हो जायेगी

शिव जी का ये पूजन पूजन आप परिवार सहित करे, पत्नी के साथ करने पर मनोकामना अवश्य पूरी होती है

भैरव वीरेन्द्र रुद्रनाथ अघोरी
वैदिक तंत्र साधना संस्थान®
8923400693

Saturday, January 27, 2024

हनुमानजी को चोला चढ़ाने की विधि



नुमानजी को चोला चढ़ाने की विधि


हनुमानजी को अक्सर सिंदूरी चोले की प्रतिमा में अधिक देखा जाता है 

क्योंकि सिंदूर ओर हनुमानजी का रिश्ता रामायण काल से चला आ रहा है


आज के समय मे जो भी हनुमानजी को सिंदूरी चोला अर्पित करता है उन्हें प्रभु की बिशेष कृपा प्राप्त होती है

लेकिन कभी कभी अज्ञानतावश साधक गलत तरीके से हनुमानजी को चोला अर्पित करते हैं 

जिससे कृपा की जगह दंड मिलता है क्योंकि हनुमानजी कलयुग के देवता हैं और नियमों के पक्के भी


आज मै आपको चोला चढ़ाने की वैदिक विधि बताने जा रहा हूँ

सामग्री :- सिंदूर, चांदी वर्क, चमेली तेल , इतर, जनेऊ


हनुमानजी को चोला मंगलवार व शनिवार को चढ़ाया जाता है साथ मे विशेष त्योहारों पर भी या ग्रहण काल के बाद भी नया चोला चढ़ाया जाता है

चोला चढ़ाने का समय दोपहर का होता है 

साधक नहा धोकर साफ वस्त्र पहने सबसे पहले महाराज को प्रणाम कर एक दीपक जलाएं और चोला बदलने की अनुमति लेकर चढे हुए चोले को सिर से पैर की तरफ हाथ से उतरता चले आसानी से हट जाता है 

अब हाथ साफ करके अपने हाथों पर चमेली के तेल की कुछ बूंदें लागये ओर पूरी प्रतिमा की मालिश करे 

तत्पश्चात एक कटोरी में सिंदूर लेकर उसमे चमेली के तेल व गुलाब का इतर मिलाकर उंगली से जब तक मिलाते रहे तब तक उसमे से सिंदूर की अंतिम गांठ तक घुल जाए 

अब मिश्रण को प्रभु के पैर से सिर की ओर चढ़ाते जाए जब पूरी प्रतिमा पर सिंदूर लग जाए 

उसके बाद चांदी वर्क से प्रतिमा को सुसज्जित करें ,जनेऊ पहनाएं ,यदि वस्त्र या लंगोट है तो धारण करवाएं 


आंखों को रुई से साफ कर दें , माथे पर तिलक लगाएं चंदन का 

हाथ धुलकर पूजन करें ,भोग अर्पित करें मुख्यतः गुड़ चना, बूंदी लड्डू, केले ,मीठा पान, या मौसमी फल जो हों उपलब्धता हो वह अर्पित करें याद रखें भोग के साथ ढाई पत्ते तुलसी ले अवश्य हो 


हो सके तो 11 पीपल के पतों पर राम नाम लिखकर माला बनाकर चढ़ाए

अब धूप - दीप से आरती करें चालीसा का यथासंभव पाठ करें 

प्रसाद वितरित कर दें ये  हुए प्रभु के चोले की पूरी विधी


नियम :- 

1. पूरी तरह साफ व सात्विक रहना होगा उस दिन ।

2. ब्रह्मचर्य का पालन करना होगा  ।

3. चोला हमेशा पैर से सिर की ओर ही चढ़ाएं इससे देव सौम्य रूप से चलते हैं ।

4. चोला चढ़ाते समय पर्दा डाल लें  ।

5. चोले के समय स्त्री उपस्थित न हो ।

6. अपने नाक मूँह बांध लें ताकि आपकी स्वास विग्रह पर न पड़ें।

7. चोला चढ़ाते समय ॐ राम रामाय नमः का निरंतर जाप करते रहे  ।


भैरव वीरेन्द्र रुद्रनाथ अघोरी

संस्थापक :- पुष्पा देवी ज्योतिष व तंत्र मंत्र शक्ति साधना फाउंडेशन®

यूट्यूब :- वैदिक तंत्र साधना संस्थान®

संपर्क :- 8923400693